First Villain: क्या आप जानते है कि हिंदी फिल्मों का पहला विनेल कौन रहा होगा. किसने इसकी शुरुआत की होगी. कौन इस कॉन्सेप्ट को लेकर आया होगा. आईए आज हम आपको पता है कि कौन है वो शख्स जो बना हिंदी फिल्मों का पहला विलेन.
हिंदी सिनेमा के इतिहास में कई दमदार विलेन्स ने अपनी भूमिका निभाई है, लेकिन अगर हम पहले विलेन की बात करते हैं, तो वह थे: डॉ. श्यामा (फिल्म “अलम आरा” – 1931)
डॉ. श्यामा हिंदी फिल्मों के पहले विलेन माने जाते हैं। उन्होंने फिल्म “अलम आरा” में एक नकारात्मक भूमिका निभाई थी, जो कि भारत की पहली बोलती फिल्म थी।
इसके बाद कई दमदार विलेन्स ने हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई, जैसे कि:
प्राण (फिल्म “जिद्दी” – 1948)
अजीत (फिल्म “नास्तिक” – 1954)
प्रेम चोपड़ा (फिल्म “वक्त” – 1965)
अमरीश पुरी (फिल्म “शान” – 1980)
गुलशन ग्रोवर (फिल्म “राम लखन” – 1989)
हमने अक्सर फिल्मों में देखा है कि दर्शकों को हीरो की एंट्री से ज्यादा विलेन की एंट्री दिलचस्प लगती है। हर नई फिल्म में लोग यह देखना चाहते हैं कि आखिर विलेन कौन होगा? आज का सिनेमा में तो मेकर्स हीरो को शानदार बनाने से लेकर विलेन को जानदार बनाना पसंद करते है.
ये शुरुआत हर दौर में रही है. हर दौर में एक न एक कलाकार ऐसा रहा है, जिसने विलेन बनकर अपनी अलग ही छाप छोड़ी है, लेकिन डॉ श्यामा सबसे अलग थे
आखिर कौन थे डॉ श्यामा
डॉ. श्यामा का असली नाम था श्याम सुंदर चौधरी, और वे एक बंगाली थे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक स्टेज आर्टिस्ट के रूप में की थी, और बाद में उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया।
डॉ. श्यामा को हिंदी फिल्मों का पहला विलेन माना जाता है क्योंकि उन्होंने फिल्म “अलम आरा” (1931) में एक नकारात्मक भूमिका निभाई थी, जो कि भारत की पहली बोलती फिल्म थी। इस फिल्म में उन्होंने एक जादूगर की भूमिका निभाई थी जो कि फिल्म की नायिका को अपने जादू में फंसाने की कोशिश करता है।
डॉ. श्यामा ने अपने करियर में लगभग 30 फिल्मों में काम किया, लेकिन उन्हें हमेशा एक विलेन के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने अपनी भूमिकाओं में इतनी जान डाली कि उन्हें हिंदी सिनेमा का पहला विलेन माना जाने लगा।
डॉ. श्यामा का निधन 1959 में हुआ था, लेकिन उनकी विरासत आज भी हिंदी सिनेमा में जीवित है।