Radhe Krishna: अक्सर कई लोग वृंदावन जाकर भी ठाकुर जी से नहीं मिल पाते उनका दर्शन नहीं कर पाते. क्या उनकी भक्ति में कमी है. या ठाकुर जी उनसे नाराज है. तो वे लोग ये प्रसंग जरूर सुनिए. सुनकर समझ जाएंगे ठाकुर जी कहा मिलते है, कब मिलते हैं , और कैसे मिलते हैं.
राजस्थान करौली में मदन मोहन जी का मंदिर है करौली में एक भक्त हुआ करते थे काले खां. काले कहां मुस्लिम थे. डाकिया का कम करते थे. एक दिन एक चिट्ठी आई डाक घर में जिस पर लिखा था मदन मोहन और पता लिखा था मंदिर का. अब काले खा तो डाकिया था चिट्ठी लेकर पते पर जाना उनका काम था. तो वह चिट्ठी लेकर के पते पर गए. पता था मंदिर का. मंदिर पहुंचे सीढ़ियां चढ़े वहां पर जो व्यक्ति मिला उससे कहा की भाई यह चिट्ठी आई है मदन मोहन की उन्हें दे दीजिएगा. सामने वाला व्यक्ति मुस्कुराया उसने कहा की ठीक है दे दूंगा लेकिन काले खां जब चिट्ठी दे रहे थे तो उस समय भवन के थोड़े से पट खुले हुए थे.
काले खां ने मंदिर के अंदर जैसे ही झांका तो सामने मदन मोहन जी की एक झलक दिखाई दी. एक झलक देखने के बाद न जानें कैसे काले खां का मन विचलित हो गया. मन में आया कि कौन है जो भीतर है हाथ में बांसुरी है, मोर पंख धरी है, इतना सुंदर है. कौन है यह?
डाकिया काले खां वापस सीढ़ियां उतारने लगे. लेकिन काले खां का मन विचलित हो गया. पैर डगबगाने लगे. समझ में नहीं आ रहा था के ये क्या हुआ कैसे हुआ, क्या देख लिया किसको देख लिया इतना मन मोहक कोई कैसे हो सकता है. जैसे पाल भर में चित चोरी कर लिया हो.
काले खां को ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ यही रह गया.
बड़ी अजीब सी लग रही होगी यह बात. लेकिन जो भक्त वृंदावन जाता है एक बार ठाकुर जी को देखता है बस वहीं का हो जाता. इसीलिए कहा जाता है की वृंदावन जाने वाले ठाकुर जी से मिलने वाले जब वापस लौटते हैं तो सिर्फ शरीर वापस लौटता दिल वहीं रह जाता है. बस यही बात है ठाकुर जी की. जो एक बार देख लेता है बस देखता ही रह जाता है. वे माखन नहीं चुराते वह चित चुरा लेते है
ठीक ऐसा चित चोरी हो गया था काले खां का. काले खा का मन विचलित हो गया था. डगमगाते हुए पैरों से आगे बढ़ रहे थे. बार-बार सोच रहे थे. कौन है. किस पूछू. काले खां जानते थे कि ये हिंदुओं का मंदिर है. पर वह अंदर कौन है?
मन में एक सवाल लिए काले खां घर गए कि अब दोबारा कैसे आऊंगा कैसे देखूंगा. काले का अपने धर्म में पूरा विश्वास था. समय पर नमाज पढ़ते थे. दुआ बंदगी करते थे. बहुत अच्छे स्वभाव के व्यक्ति थे. सब जानते थे. बड़े अच्छे स्वभाव के व्यक्ति बड़े ईमानदार थे.
लेकिन काले खां के साथ आज जो कुछ हुआ उससे उनका मन शांत हो गया. आज दिमाग काम नहीं कर रहा था. आज ऐसा लग रहा था जैसे दिल थक गया है. सब कुछ ठहर गया है वहां.
तब काले खां ने सोचा कि मिलने का एक ही रास्ता है चिट्ठी. तो अब काले खां ने एक झूठी चिट्ठी लिखी मदन मोहन के नाम. क्योंकि पता तो था उनका पता कि मदन मोहन कहां रहते है.
चिट्ठी लिखकर फिर पहुंचे लेकिन अब जो हुआ वो उससे भी ज्यादा था. जैसे ही चिट्ठी लेकर गए अब फिर एक हलकी सी झलक पाई बस.
फिर वहीं शरीर कापने लगा, आज फिर वही हुआ, फिर लौट आए, काले खां का मन बैतेन रहने लगा. इतना बैचेन की अब चिट्ठियां लिखने लगे, लिखते लिखते एक दिन मन में सोच लिया की आज पुजारी जी को बोलूंगा कि एक बार द्वार खोल कर दिखा तो दे, कौन है वो.
एक दिन बड़ी हिम्मत से जाकर के पुजारी जी से बोले की जो अंदर है जो बंसी बजा रहा है, सर पर मोर पंख है एक पाव पर खड़ा हुआ है यह कौन है. पुजारी जी मुस्कुराए. पुजारी जी ने कहा की यही तो है मदन मोहन जिनके नाम की चिट्ठी तुम हमेशा लेकर आते हो बस काले खां वहीं एकदम स्थिर हो गए.
यह है मदन मोहन…….. पुजारी जी ने कहा की हां यह है मदन मोहन. काले खां की बैचेनी बढ़ने लगी उसने पुजारी से कहा कि एक बार हमें भी दिखा दो, हमें भी मिलवा दो, हम भी मिलना चाहते हैं. मदन मोहन से,
पुजारी जी जानते थे यह मुस्लिम है दूसरे धर्म का है नहीं चाहते थे की वो मंदिर में आए इसलिए टाल दिया, कह दिया की अभी तो नहीं जा सकते, अभी वह व्यस्त है. अभी आप जाइए. काले खा मायूस हो कर घर आगए.
लेकिन कालें खां ने जाना नहीं छोड़ा. अब पुजारी जी को समझ में आ गया था कि यह मदन मोहन को देखने ही आते हैं. लेकिन पुजारी ने द्वार बंद कर दिया. काले खां अब मदन मोहन जी को नहीं देख पा रहे थे. वे उदास हो गए अपने घर में अपने कमरे की खिड़की पर बैठते थे सामने पेड़ पर मदन मोहन बैठे दिखाई देते थे. हर जगह बस मदन मदन मदन. वे इतने प्रेम में डूब गए कि अपने दफ्तर जाना बंद कर दिया काम का छोड़ दिया.
मन में बस एक ही बात चलती थी कि मोहन को देखना है, उनको देखना है. वे मन ही मन बोले मैं कितना प्रयास कर रहा हूं आपको देखने का आपसे मिलने का.
काले खां ने कहा कि मैं जिस भी धर्म का हूं, जिस भी जाति का हूं, जो भी भक्ति मैंने की है, उसे सारी भक्ति को आपको समर्पित करता हूं. एक बार दर्शन दे दो. एक बार मिल लो मुझसे. और यदि नहीं मिलोगे ना कुछ खाऊंगा न हीं कुछ पियूंगा. भूखे प्यासे बैठ गए एक दिन, दो दिन, तीन दिन, दिन बीत गए. तीसरे दिन की रात्रि थी. बेहोश हो गए.
तीन दिन से भूखे प्यासे थे. इधर मंदिर में मदन मोहन जी के यहां रात्रि को ठाकुर जी का भोग रखा जाता है की रात्रि को ठाकुर जी को भूख लगे तो भोग लगा ले. इधर काले खा अपने कमरे में मूर्छित पड़े हुए.
तब चमतकार हुआ अचानक से रोशनी होती है. काल खां तभी होश में आए काले खां की आंखें खुलती हैं और सामने देखते हैं घुंघराले बालों वाला मोती मोती आंखों वाला मोर पंख लगाए पीतांबरी धारी मुस्कुराते हुए ऐसे जिसमें अनंत ब्रह्मांड बसते है. ऐसा तेज जैसे सैकड़ो सूर्य एक साथ चमक रहे हो.जो कभी किसी की कल्पना में भी न हो. ऐसा अद्भुत तेज सामने खड़े थे मदन मोहन
तभी मदन मोहन काले खां की तरफ हाथ बढ़ाके हुए बोलते हैं, काले खा बैठो भोजन कर लो, मैं आ गया हूं, इतने भर से काले खां बैठ गए. मदन मोगन अपने हाथों से काले खा को भोजन करवाते हैं. अपना भोग खिलाते हैं. बड़ा स्नेह है बड़ा प्यार दिखाते है. एक भक्त का इससे अद्भुत मिलन कभी नही देखा था.
काले खां ही वो भक्त हैं जिन्होंने कहा था. हो सकता है मैं दूसरी जाति का हूं. हो सकता है मैं दूसरे धर्म का हो सकता है की मैं वो रीति रिवाज नहीं जानता. मैं उस तरीके का नहीं हूं. लेकिन तू तो जगन्नाथ है ना. पूरे जगत का नाथ. जब तुम पूरे जगत का नाथ है तो तू मेरा भी नाथ है.
काले का भोजन करते-करते मूर्छित. इधर सुबह हुई. मंगल आरती का समय हुआ. गोस्वामियों ने देखा की भगवान का बंटा भोग जो रात को रखा था वह बर्तन यहां नहीं है. वह सोने का कलश यहां नहीं है. कहा गया चोरी हो गया. चारों तरफ हाहाकार मच गया. बात आग की तरफ फैल गई.
सब तरफ बात फैल गई की भगवान का क्लश चोरी हो गया. सोने का कलश चोरी हो गया. मंदिर के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई. इधर काले खां को होश आया. बात यहां तक पहुंची, उधर मंदिर के बाहर भीड़ खड़ी हुई है. तभी सीढियों में हाथ में कलश लिए हुए काले खा चढ़ रहे थे. और कह रहे हैं की यह लो यह गुम हो गया, तभी सब सन्न थे कह रहे थे कि ये चोर है , देखते ही सब चिल्लाने पड़ते हैं. यह चोरी करके ले गया था यह दूसरे धर्म का चोरी करके ले गया था मारो इसे.
लोग टूट पड़ते हैं मारने लगते हैं, काल खा बोलते हैं की मैंने चोरी नहीं की, चोरी तो तुम्हारे मदन मोहन ने की है, सब हैरानी से देखते हैं.
काले खां बोले चोर मैं नही चोर तो तुम्हारा मदन मोहन है, इसने मेरा चित चुराया, इसने मुझे कहीं का भी नहीं छोड़ा, मेरी नौकरी छूट गई, मेरा कम छूट गया, मेरा सब कुछ छूट गया, जब से इसको देखा है. कितनी बार पुजारी जी से कहा कि एक बार दिखा दो एक बार मिलवा दो. नहीं माने तो मैंने ही कह दिया की जब तक नहीं मिलोगे कुछ नहीं खाऊंगा पियूंगा. बस रात को आ गए कलश ले कर के, इसमें भोजन लेकर के अपने हाथों से बैठ कर के खिलाया और ये कलश वही छोड़ गए.
सब लोग सन देखते रह गए. काले खां क्या कह रहा है. काले खां बोले की सजा देनी है तो दे दो. लेकिन एक सजा चाहिए, इस मंदिर में ही रहूंगा. जो सजा देनी है दे दो पर रहूंगा यही. कोई सेवा दे दो, सजा दे दो, रहूंगा यहीं. मदन मोहन के पास
लेकिन गोस्वामी जी जानते थे. सब जानते थे. हमारे ठाकुर जी तो लीला करते रहते हैं. जिस भक्त से प्रेम करते हैं उसके साथ ऐसी लीलाएं होती रहती है
तो कभी यह मत समझना कि आपको वृंदावन जाकर भगवान के दर्शन नहीं हुए. आप एक बार दिल से बुलाओ तो सही. ठाकुर जी इतना प्रेम करते हैं अपने भक्तों से इतना प्रेम करते हैं सारे नियम तोड़कर, सारे बंधन तोड़ के सब कुछ छोड़कर के अपने भक्त से मिलने आ जाते हैं. बस आपकी पुकार में उसे सच्चाई होनी चाहिए. वह विश्वास होना चाहिए.
ये भी एक भक्त काले खां की सच्ची घटना जिसने कृष्ण को पाने के लिए वो सब किया जो एक भक्त को करना चाहिए.