SKM: संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम), केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (सीटीयू), स्वतंत्र/क्षेत्रीय फेडरेशन, एसोसिएशनों का संयुक्त मंच ने जारी की प्रेस रिलीज
कॉरपोरेट नीतियों को खत्म करो ; मेहनतकश जनता की आजीविका की रक्षा करो
बड़ा ऐलानः 26 नवंबर 2024 को जिला मुख्यालयों में मजदूरों और किसानों की संयुक्त विरोध कार्यवाही
मांगें : न्यूनतम समर्थन मूल्य, सबको रोजगार, कर्ज मुक्ति, 4 श्रम संहिताओं की वापसी, निजीकरण का खात्मा, महंगाई पर रोक, सांप्रदायिक विभाजन के खिलाफ कानून का प्रभावी क्रियान्वयन तथा महिलाओं, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और दलितों पर हिंसा पर रोक l
पूरे भारत के मजदूर और किसान 26 नवंबर 2024 को अपनी मांगों के तत्काल समाधान को लेकर देश के सभी जिलों में विरोध प्रदर्शन आयोजित करेंगे। चार साल पहले इसी दिन तीन काले कृषि कानूनों और चार श्रम संहिताओं के खिलाफ मजदूरों की देशव्यापी आम हड़ताल के साथ समन्वय बनाकर किसानों के महान संघर्ष की शुरुआत की गई थी। 26 नवम्बर इस महान संघर्ष की चौथी वर्षगांठ के महत्वपूर्ण अवसर को चिह्नित करता है।
यह विरोध कार्रवाई 12 प्रमुख मांगों और 24 अगस्त 2023 को स्वीकृत किए गए मजदूरों और किसानों के मांगपत्र पर आधारित है। प्रमुख मांगें हैं :
- सभी फसलों के लिए कानूनी रूप से गारंटीकृत खरीद के साथ सी-2+50% पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करो।
- 4 श्रम संहिताओं को निरस्त करो ; श्रम का ठेकाकरण पर रोक लगाओ।
- संगठित, असंगठित, योजना कर्मियों, ठेका मजदूरों और कृषि क्षेत्र सहित सभी मजदूरों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 26000 रुपये प्रति माह का न्यूनतम वेतन और 10000 रुपये प्रति माह पेंशन और सामाजिक सुरक्षा लाभ लागू करो।
- ऋणग्रस्तता और आत्महत्याओं को समाप्त करने के लिए किसानों और खेत मजदूरों के लिए सर्वसमावेशी ऋण माफी ; किसानों और मजदूरों के लिए कम ब्याज दरों पर ऋण सुविधाएं सुनिश्चित करो।
- रक्षा, रेलवे, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली सहित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण पर रोक लगाओ। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) को खत्म करो। कोई प्रीपेड स्मार्ट मीटर नहीं, कृषि पंपों के लिए मुफ्त बिजली, घरेलू उपयोगकर्ताओं और दुकानों को प्रतिमाह 300 यूनिट मुफ्त बिजली दो।
- डिजिटल कृषि मिशन (डीएएम), राष्ट्रीय सहयोग नीति और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ आईसीएआर समझौते, जो राज्य सरकारों के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं और कृषि के निगमीकरण को बढ़ावा देते हैं, को खत्म करो।
- अंधाधुंध भूमि अधिग्रहण को समाप्त करो और एलएआरआर अधिनियम 2013 और एफआरए को लागू करो।
- सभी के लिए रोजगार और नौकरी की सुरक्षा की गारंटी दो। मनरेगा में 200 दिन काम और 600 रुपये प्रतिदिन मजदूरी दो। इसका शहरी क्षेत्रों में विस्तार करो। मनरेगा से ग्रामीण परिवारों को बाहर करने की प्रक्रिया को तुरंत वापस लो। लंबित मजदूरी का भुगतान करो।
- फसलों और मवेशियों के लिए एक व्यापक सर्वसमावेशी सार्वजनिक क्षेत्र बीमा योजना लागू करो। फसल बीमा और सभी योजनाओं का लाभ बटाईदार किसानों के लिए भी सुनिश्चित करो।
- महंगाई पर रोक लगाओ। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करो। सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सुनिश्चित करो। सभी के लिए 60 वर्ष की आयु में 10000 रुपये मासिक पेंशन सुनिश्चित करो। इसके लिए संसाधन जुटाने के लिए अति-धनवानों पर कर लगाओ।
- समाज में सांप्रदायिक विभाजन को रोकने के लिए सख्त कानून बनाओ और उनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करो। संविधान में परिकल्पित धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पर कायम रहो।
- लैंगिक सशक्तिकरण और फास्ट ट्रैक न्यायिक प्रणाली के माध्यम से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करो; दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों सहित हाशिए पर पड़े सभी तबकों के खिलाफ हिंसा, सामाजिक उत्पीड़न और जातिगत तथा सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव को समाप्त करो।
इन मांगों को हासिल करने के लिए निरंतर और बड़े पैमाने पर एकजुट संघर्ष समय की मांग है।
मोदी सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के साथ 9 दिसंबर 2021 के लिखित समझौते का उल्लंघन किया है। यह वास्तविक आजीविका के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए लगातार सांप्रदायिक आधार पर मेहनतकश लोगों को ध्रुवीकृत करने और हिंसा भड़काने की कोशिश कर रही है।
इन मांगों पर नवंबर 2023 में महापड़ाव, 16 फरवरी 2024 को औद्योगिक हड़ताल और ग्रामीण बंद तथा उसके बाद भाजपा को बेनकाब करने और उसका विरोध करने के लिए चलाए गए अभियान ऐसे प्रमुख कारक थे, जिनके परिणामस्वरूप 18वीं लोकसभा चुनाव में एनडीए को निर्णायक झटका लगा। हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी सत्ता में आने के बावजूद एनडीए का वोट शेयर 46.3% से घटकर 39.9% रह गया है।
आम जनता का राजनीतिकरण करने के लिए पूरे भारत में जन संघर्षों को तेज करना ही सही रास्ता है, ताकि चुनावी संघर्षों में भी कॉर्पोरेट समर्थक राजनीतिक दलों को निर्णायक रूप से हराया जा सके।
दोनों मंच 7 से 25 नवंबर तक गांवों और कस्बों में वाहन जत्था, साइकिल जत्था, पदयात्रा, घर-घर जाकर पर्चे बांटने जैसे अभियान चला रहे हैं।
कृषि संकट से किसानों को मुक्ति दिलाने और मजदूरों को उनके संघर्षों में जीत दिलाने के लिए मजदूर-किसान एकता का निर्माण और उसे मजबूत करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दोनों मंचों ने सभी तबकों – मजदूरों, किसानों, महिलाओं, छात्रों, युवाओं, हाशिए पर पड़े वर्गों, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं, प्रगतिशील व्यक्तियों से बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की है।