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Success Story: न मां, न बाप, शरीर पूरा दिव्यांग, लेकिन हौंसला सरकारी नौकरी हासिल करने का

Success Story:Success Story: न मां, न बाप, शरीर पूरा दिव्यांग, लेकिन हौंसला सरकारी नौकरी हासिल करने का

Success Story: कहते है हर किरदार की एक कहानी है, किसी ने बना ली और किसी ने बनानी है. सफलता की पहली और आखिरी सीढ़ी एक ही है वो है हौंसला. इसलिए कहते है हौंसलों से ही उड़ान होती है.

आज हम बताएंगे एक ऐसे किरदार के बारे में जो दिव्यांग है. मां-बाप का सहारा सिर पर नहीं है, पैसा-धैला कुछ भी साथ नहीं है. अगर कुछ है तो बस हौंसला. जहानाबाद का मोहम्मद असलम जिसके सिर से मां-बाप का साया उठने के बाद वो जीवन यापन के लिए ट्राई साइकिल से निजी कंपनी के लिए डिलीवरी बॉय बनकर अपने सपनों को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहा था

असलम सुबह होते ही घर-घर जाकर निजी कंपनी से आए सामनों की डिलीवरी करता और इस डिलीवरी से मिलने वाली रकम से ना सिर्फ अपनी जीविका चलाता है बल्कि अफने सपने को भी पूरा करता.

असलम का सपना था कि उसके पास सरकारी नौकरी होनी चाहिए. जिसके लिए वह दिन रात लगा रहा. घर-घर डिलीवरी कर के वह मिले हुए पैसों से बीपीएससी की तैयारी की सामग्री भी खरीदता और घर भी चलाता.

दिव्यांग असलम को बचपन में में ही लकवा मारने की वजह से दोनों पैर अपाहिज हो गए थे. बीएड की पढ़ाई के दौरान मां का साया उठना और दिव्यागंता के बाद कोरोना काल में फिर से एक्सीडेंट होना मानो दुखो का पहाड़ टूट गया.

लेकिन दिव्यांग असलम ने हिम्मत नहीं छोड़ी और वह लगातार पढ़ रहा है,. मेहनत कर रहा है. काम से कमाए पैसे से पेट काटकर बीपीएससी की किताबें खरीद रहा है, ताकि एक दिन पढ़ कर वह नौकरी कर सके.

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